बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास
प्रश्न- हड़प्पा संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
हड़प्पा संस्कृति को सिन्धु घाटी की संस्कृति भी कहा जाता है। हड़प्पा संस्कृति की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं हड़प्पा संस्कृति कांस्यकालीन संस्कृति है।
(1) जल निकासी व्यवस्था - हड़प्पा संस्कृति के प्रायः सभी नगर अपनी नालियों की व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध हैं। प्रायः प्रत्येक सड़क एवं गली के दोनों ओर पक्की नालियाँ बनायी गयी थी। चौड़ी नालियों की पटान के लिए कहीं-कहीं बड़ी-बड़ी ईंटों अथवा पत्थरों का प्रयोग किया गया है। नालियों की जुड़ाई और प्लास्टर में मिट्टी, चूने और जिप्सम का प्रयोग किया गया था। किसी-किसी नाली में मेहराब भी दिखाई पड़ता है। मकानों में आने वाली नालियाँ अथवा परनाले सड़क की नालियों में मिल जाते थे। इसी प्रकार नगर में छोटी-छोटी नालियाँ बड़ी तथा प्रमुख नालियों में मिल जाती थीं। इस योजना द्वारा घरों, गलियों और सड़कों का गन्दा मानी नगर से बाहर निकाल दिया जाता था। इन नालियों को समय-समय पर साफ करने की व्यवस्था थी।
(2) भवन निर्माण - मोहनजोदड़ो में आज से 5000 वर्ष पहले पक्की ईंटों के बने हुए छोटे-बडे मकान मिले हैं। यहाँ भवन निर्माण की विशेष पद्धतियाँ प्रयोग की गई हैं। मकानों के ऊपरी भाग के निकट ईंट से निर्मित प्लेटफार्म होते थे। जिस पर सम्भवतः धान के पीसने एवं कूटने का काम किया जाता था। बाढ़ की सुरक्षा की दृष्टि से एक तटबन्दी, किले के चारों ओर की जाती थी। इसके अतिरिक्त सुरक्षा की दीवारें 40 फीट चौड़ी और 35 फीट ऊँची होती थीं। दीवारों के अन्दर का क्षेत्र 1200 फीट लम्बा और 600 फीट चौड़ा होता था। परमोटे के पश्चिमी भाग पर निर्मित प्रवेशद्वार पर अनेक छतें होती थीं जिनका उपयोग उत्सव के आयोजन के समय किया जाता था। यहाँ एक 85 वर्ग फीट का बड़ा भवन मिला है, जिसकी छत बीस खम्भों पर अवलम्बित है।
(3) नगर निर्माण योजना हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना उच्चकोटि की थी। यहाँ के नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया जाता था।
(4) सामाजिक जीवन हड़प्पा संस्कृति में यहाँ के निवासी सुखी तथा वैभवपूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। उनकी सामाजिक व्यवस्था की सबसे छोटी इकाई परिवार थी। हड़प्पा संस्कृति में जैसी ठोस योजना और बस्तियों के निर्माण में व्यापक एकरूपता देखने को मिलती है। उससे वहाँ सुदृढ़राजतन्त्र के अस्तित्व का संकेत मिलता है। समाज तीन वर्गों में बँटा था -
(i) विशिष्ट वर्ग
(ii) मध्यम वर्ग
(iii) कमजोर वर्ग।
इस संस्कृति में विभिन्न रूढ़िवादिता के अस्तित्व का संकेत मिलता है। सिन्धु राज्यतन्त्र पर धर्म तन्त्र की बाहरी छाप देखने को मिलती है।
(5) धर्म तथा धार्मिक विश्वास सैन्धव नगरों की खुदाई में एक भी अवशेष ऐसा नहीं मिलता है जिसे मन्दिर, समाधि अथवा वेदी की संज्ञा प्रदान की जा सके। अतः यहाँ के लोगों के धर्म में मातृदेवी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान था। इस सभ्यता के अनेक स्थलों से विभिन्न आकार-प्रकार के वस्तु आभूषण धारण किए हुए अनेक नारी मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। ये कमर में मेखला युक्त पटका, सिर पर संख्याकार मुकुट तथा गले में हार पहने हुए हैं। मार्शल के अनुसार, मातृदेवी का सम्प्रदाय सैन्धव सभ्यता में सर्वप्रमुख था। मातृदेवी पूजा के साथ-साथ हड़प्पा संस्कृति में एक पुरुष देवता की भी पूजा की जाती थी, जिसकी समता हम हिन्दू धर्म के पशुपति शिव से स्थापित कर सकते हैं। मातृ देवी, पशुपति शिव के साथ पशु-पक्षी तथा वृक्षों की पूजा भी की जाती थी।
(6) आर्थिक जीवन हड़प्पा संस्कृति के लोग कृषि तथ पशुपालन करते थे। गेहूँ, जौ, कपास की खेती मुख्य रूप से होती थी। इसके अलावा यहाँ के निवासी चावल, मटर, तिल, नारियल, केला आदि पैदा करते थे।
(7) शिल्प एवं उद्योग-धन्धे इस संस्कृति का सर्वप्रमुख उद्योग वस्त्र उद्योग था। सूत कताई एवं वस्त्रों की बुनाई के धन्धे अत्यन्त विकसित थे। मोहनजोदड़ो से मजीठ रंग से लाल में रंगे हुए लाल कपड़े के अवशेष चाँदी के बर्तन में प्राप्त हुए हैं। यहीं से ताँबे के दो उपकरणों में लिपटा हुआ सूती कपड़ा एवं सूती धागे भी प्राप्त हुए हैं। लोथल से प्राप्त मुद्रांकों पर सूती वस्त्रों की छाप मिली है।
(8) कला हड़प्पा संस्कृति में कला के अन्तर्गत प्रस्तर धातु एवं मृण्मूर्तियों का उल्लेख किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त मुहरें, मनके और मृद्भांड एवं लघु कलाएँ इनके सौन्दर्य बोध को इंगित करती हैं।
मोहनजोदड़ो से एक दर्जन तथा हड़प्पा से तीन प्रस्तर मूर्तियाँ मिली हैं। धातु मूर्तियाँ मधूच्छिष्ठ विधि या लुप्त मोमविधि की प्रक्रिया से बनायी जाती थीं। मृण्मूर्तियों का निर्माण ज्यादातर चिकोटो विधि से किया जाता था। कूबड़ वाले बैल की तुलना में बिना कूबड़ वाले बैल की मृण्मूर्तियाँ अधिक संख्या में मिली हैं।
(9) अन्त्येष्टि संस्कार इससे उनके पारलौकिक जीवन में विश्वास की पुष्टि होती है। अन्त्येष्टि की तीन विधियाँ प्रचलित थीं-
(i) पूर्ण समाधिकरण
(ii) आंशिक समाधिकरण तथा
(iii) दाह संस्कार।
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- प्रश्न- बेबीलोनिया की स्थापत्य कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बेबिलोनियन सभ्यता की प्रमुख देनों का मूल्यांकन कीजिए।
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- प्रश्न- असीरियन सभ्यता के महत्व पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- मिस्रवासियों के धार्मिक जीवन का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मिस्र का समाज कितने भागों में विभक्त था? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मिस्र की सभ्यता के पतन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- चीन की सभ्यता के विषय में आप क्या जानते हैं? इस सभ्यता के इतिहास के प्रमुख साधनों का उल्लेख करते हुए प्रमुख राजवंशों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन चीन की सामाजिक व्यवस्था का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- चीनी सभ्यता के भौगोलिक विस्तार का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चीन के फाचिया सम्प्रदाय के विषय में बताइये।
- प्रश्न- चिन राजवंश की सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।